सुदामा पांडेय धूमिल के काव्य में सामाजिक चेतना

Authors

  • रवि कुमार Author

Abstract

साहित्य को समाज का दर्पण माना जाता है क्योंकि एक कवि या लेखक अपने साहित्य के माध्यम से समाज का चित्रण जाने-अनजाने अवश्य करता है। समाज का होना व्यक्ति के विकास के लिए आवश्यक है अर्थात हम मान सकते है कि समाज से मानव अपनी विभिन्न जरूरतों एवं अपने महत्त्वपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति करता है। समाज एक महत्तवपूर्ण संस्था है, जिससे व्यक्ति मानसिक व सांस्कृतिक रूप से उन्नतिशील हो सकता है। समाज के द्वारा ही व्यक्ति अपना जीवन सुव्यवस्थित रूप से व्यतीत कर सकता है

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Published

2025-01-07

How to Cite

सुदामा पांडेय धूमिल के काव्य में सामाजिक चेतना. (2025). अमृत काल (Amrit Kaal), ISSN: 3048-5118, 3(1), 1-7. https://languagejournals.com/index.php/amritkaal_Journal/article/view/42